शरद पूर्णिमा का महत्त्व


5 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है. आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. अश्विन महीने में पड़ने वाली पू्र्णिमा का विशेष महत्व होता है. शरद पूर्णिमा वाली रात को जागरण करने और रात में चांद की रोशनी में खीर रखने का विशेष महत्व होता है. इस रात को चंद्रमा अपनी पूरी सोलह कलाओं के प्रदर्शन करते हुए दिखाई देते हैं. शरद पूर्णिमा को कोजागरी या कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.

नारदपूर्ण के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी का भ्रमण करने आती हैं. इसलिए आसमान पर चंद्रमा भी सोलह कलाओं से चमकता है. शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी रात में जो भक्त भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं.

श्री कृष्ण ने किया रासलीला

श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द में रास पंचाध्यायी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इसी शरद पूर्णिमा को यमुना पुलिन में गोपिकाओं के साथ महारास के बारे में बताया गया है।

ये है कहानी

पुराणों के अनुसार एक बार गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने कीइच्छा प्रकट की।

श्री कृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रास का आयोजन किया। इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया।


XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
फेसबुक पर हमारा पेज लाइक कीजिये : व्यंजन बनाना सीखें

एक टिप्पणी भेजें